दान दक्षिणा

नैतिक मूल्यों के बिना किसी सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। दान और दक्षिणा दोनों ही सभ्य समाज की संजीवनी है।ईश्वर ने आपको अगर कोई विशेष योग्यता दी है तो एक जागरुक नागरिक के तौर ये आपकी नैतिक जिम्मेदारी है कि आप समाज निर्माण में सहयोग करें। दान करने के लिए सामार्थ्य से ज्यादा सुविचारों की आवश्यकता होती है। समाज के उत्थान के लिए गुरुजनों और गुरु संस्थानों के उत्कृष्ट कार्यों को प्रेरित करने हेतु सदाचार से किया गया सहयोग दक्षिणा की श्रेणी में आता है। परमधाम संस्थान गौसेवा के लिए दान,कन्याओं के शुभ जीवन के लिए दान और बेहतर स्वास्थ्य के लिए योग संवर्धन दान हेतु आप सभी को आमंत्रित करता है। सनातन संस्कृति में गौ-सेवा,कन्यादान और स्वास्थ्य सहयोग का विशेष महत्व है। सदाचार के इस पुनित कार्य के लिए देश विदेश से लगातार आपका साथ और समर्थन मिल रहा है,इस सहयोग के लिए परमधाम संस्थान आपका आभार प्रकट करता है। जन सहोयग के सभी आंकड़े पूरी पारदर्शिता के साथ आपके सामने रखे जा रहे हैं।

दान का महत्व

गौ सेवा के लिए दान

सनातन धर्म में गाय का विशेष उल्लेख मिलता है। हर धार्मिक अनुष्ठान से लेकर हर संस्कार और रिवाज में गाय का विशेष महत्व बताया गया है।अथर्ववेद के अनुसार- 'धेनु सदानाम रईनाम' अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है। वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है। वह जननी है। ब्रह्मांड की रुप रेखा के अनुसार गाय का वास एक औजस्वी सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना गया है। इस धरा पर गाय एक मात्र ऐसा पशु है जिसको माता कहकर पुकारा जाता गौ सेवा करने का तात्पर्य है सीधे सीधे प्रकृति मां की सेवा करना क्यों कि गाय को सर्व जननी कहा जा सकता है। गाय से जुड़ी सभी चीजें जैसे दूध, दही मक्खन,घी,गोबर और गोमूत्र जैसी सभी चीजें अद्भुत गुणों से सम्पन्न हैं। गाय का सिर्फ धार्मिक और आस्थिक महत्व ही नहीं बल्कि ज्योतिषिय महत्व भी है। ज्योतिष के अनुसार 09 ग्रहों की शांति के लिए गाय की पूजा विशेष रुप से लाभदायी है।

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कन्यादान

बेटी हर पिता के लिए स्वाभीमान होती है और हर मां का अरमान। हर धर्म संस्कृति के अलग अलग धाराओं में बेटी का महता का उल्लेख मिलता है,लेकिन आज भी एक जीवित पिता के लिए बेटी पूरे संसार का केंद्र बिंदू होती है। बेटी परमात्मा द्वारा दी गई एक अमूल्य धरोहर है जिससे घर आंगन का भाग्योदय माना जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों के मुताबिक़, विवाह संस्कार में भावी वर को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। सनातन परंपरा के अनुसार कन्यादान का अर्थ होता है कि जब कन्या का पिता धार्मिक रीतिरिवाजों का पालन करते हुए अपनी कन्या का हाथ वर के हाथों में सौंपता है, तो वर कन्या के पिता को आश्वासन देता है कि वो उनकी बेटी का पूरा ख्याल रखेगा और उसकी पूरी सुरक्षा करेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो पिता अपनी बेटी का कन्यादान करता है वो स्वर्ग के सुख की अनुभूति प्राप्त करता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था।

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योग संवर्धन

योग प्राचीन भारतीय परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। योग को रोग की रोकथाम, स्वास्थ्य संवर्धन और कई जीवन शैली से संबंधित विकारों के प्रबंधन के लिए जाना जाता है। परम धाम संस्थान योग के महत्व को जानता है। विशेषज्ञों और ऋषियों से सहयोग से योग का परिष्कृत रुप हमारा संस्थान, ना सिर्फ जन जन तक पहुंचाना चाहता है बल्कि योग को उनकी दिन चर्या का अहम हिस्सा बनाना चाहता है। भावी पीढ़ी में चरित्र निर्माण के दौरान ही योग का बीज बौना परमधाम का परम उद्देश्य है। इसलिए स्कूली शिक्षा में एक पाठ्यक्रम की तरह और आम लोगों के जीवन में एक व्यवहारिक सूत्र की तरह योग को सम्मिलित किया जा रहा है। योग की इस उत्कृष्ट शैली को जन जन तक पहुंचान के लिए और इसे सुदृढ़,सक्षम बनाने के लिए आप अपना सहयोग कर सकते हैं।

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