बेटी हर पिता के लिए स्वाभीमान होती है और हर मां का अरमान। हर धर्म संस्कृति के अलग अलग धाराओं में बेटी का महता का उल्लेख मिलता है,लेकिन आज भी एक जीवित पिता के लिए बेटी पूरे संसार का केंद्र बिंदू होती है। बेटी परमात्मा द्वारा दी गई एक अमूल्य धरोहर है जिससे घर आंगन का भाग्योदय माना जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों के मुताबिक़, विवाह संस्कार में भावी वर को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। सनातन परंपरा के अनुसार कन्यादान का अर्थ होता है कि जब कन्या का पिता धार्मिक रीतिरिवाजों का पालन करते हुए अपनी कन्या का हाथ वर के हाथों में सौंपता है, तो वर कन्या के पिता को आश्वासन देता है कि वो उनकी बेटी का पूरा ख्याल रखेगा और उसकी पूरी सुरक्षा करेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो पिता अपनी बेटी का कन्यादान करता है वो स्वर्ग के सुख की अनुभूति प्राप्त करता है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था।